Mandir ki Prikrama: क्यों करते है मूर्ति और मंदिर में परिक्रमा, इसके पीछे है कारण…

Why do we circumambulate around an idol or temple, the reason behind this is...

किस भगवान की कितनी करनी चाहिए परिक्रमा…

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Mandir ki Parikrama:मंदिर में पूजा के बाद हम मूर्ति या मंदिर की परिक्रमा जरूर लगाते है। शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा या प्रभाव रहता है, जो निकट अधिक और दूर घटता जाता है। इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मण्डल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। हालांकि मंदिरों में पूजा के बाद परिक्रमा करना बहुत ही सामान्य अनुष्ठान है, लेकिन इससे भक्तों पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। वैसे परिक्रमा को प्रदक्षिणा या प्रदक्षिणम भी कहा जाता है।
परिक्रमा हिंदू धर्म में एक सामान्य अनुष्ठान है। परिक्रमा हमेशा मूर्तियों, मंदिरों, पेड़, नदियों, पहाड़ों के आसपास की जाती है। हिंदू धर्म में पूजा करने के बाद पूरे मंदिर या मूर्ति की परिक्रमा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से भगवान प्रसन्न होते है। भक्तों के दुखों को दूर करते है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। मंदिर में  परिक्रमा इसलिए भी की जाती है, क्योंकि दैवीय शक्तियों के आभामंडल के तेज से हमारे दुःखो का नाश होता है। उलटे दिशा में परिक्रमा करने पर दैवीय ज्योतिर्मण्डल की गति और हमारे अंदर विद्यमान परमाणुओं में टकराव पैदा होता है। जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जाने-अनजाने उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भी पड़ता है।

किस देव की कितनी करनी चाहिए परिक्रमा …..

वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है। परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की अलग-अलग परिक्रमा संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे हमारे पाप नष्ट होते है। सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम है।

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महिलाओं द्वारा वटवृक्ष की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक माना है।

भगवान शंकर की आधी परिक्रमा की जाती है। भगवान शंकर की परिक्रमा करने से ख्याल और अनर्गल स्वप्रों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को ना लांघे।

देवी मां की एक परिक्रमा की जानी चाहिए। मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे संजोये गये संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते है।

श्रीगणेश जी और हनुमान जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। गणेश जी की परिक्रमा करने से कई अतृप्ति कामनाओं की तृप्ति होती है। गणेश जी के विराट स्वरूप और विधिवत मंत्रों का ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते है।

भगवान विष्णु जी एवं उनके अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से ह्दय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि होती है।

सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन आनंद से परिपूर्ण हो उठता है। बुरे और कड़वे ख्याल का विनाश होकर श्रेष्ठविचार पोषित होते है। हमे ऊँ भास्कराय: नम: का भी उच्चारण करना चाहिए। जो कई रोगों का नाशक है।

परिक्रमा करते समय इन नियमों का रखे ध्यान

परिक्रमा करते समय बीच में रूकना नहीं चाहिए। परिक्रमा करते समय बात नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय देवी-देवताओं का ध्यान रखना चाहिए। बीच में छोड़ी गई परिक्रमा को पूर्ण नहीं मानी जाती है। परिक्रमा वहीं खत्म करे, जहां से शुरू की गई थी।

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