Betul Forest News : बैतूल जिले से विलुप्त हो गए गिद्ध, द्वितीय चरण की गणना भी पूरी

Betul Forest News : पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में गिद्धों की अहम भूमिका रही है, लेकिन आज गिद्ध प्रजापति लगभग जिले से विलुप्त हो गई है। गणना के दौरान बैतूल जिले में एक भी गिद्ध पक्षी नहीं मिला है। गिद्ध पक्षी के नहीं मिलने से एक चिंता का कारण बन सकता है। गिद्ध पक्षी के विलुप्त होने का मुख्य कारण लगातार हो रहे अंधाधूंध रसायनों का प्रयोग व प्राकृतिक संसाधनों के दुरूपयोग को माना जा रहा है। गिद्ध पक्षी के विलुप्त हो जाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने लगा है।

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Betul Forest News :  बैतूल जिले में गिद्धों की प्रजाति को बचाने के कोई ठोस प्रयास नहीं हुए है। यहीं कारण है कि अब जिले से गिद्ध विलुप्त हो चुके है। विलुप्त हो रही प्रजापतियों को बचाने के लिए वनविभाग की अहम जिम्मेदारी रहती है। सरकार विलुप्त प्रजापतियों को बचाने के लिए कई प्रयास कर रही है और वन विभाग को इसका फंड भी दिया जाता है, लेकिन बैतूल जिले में गिद्धों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। एक भी गिद्ध नहीं मिलने से यह साबित हुआ है कि वन विभाग ने गिद्धों के बचाव को लेकर कोई काम नहीं किए। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हाल ही में द्वितीय चरण की गिद्धों की गणना हुई, जिसमें बैतूल जिले के किसी भी वन परिक्षेत्र में गिद्ध दिखाई नहीं दिया है। गिद्ध पक्षी की गणना के लिए वन विभाग ने कई टीमें गठित की थी। इन टीमों द्वारा अलग-अलग जंगल क्षेत्र में पहुंचकर गिद्धों को देखा और सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की गई। कहीं भी गिद्ध दिखाई नहीं दिया। कुछ वर्षो पहले जहां जंगलों के कुछ हिस्सों में गिद्ध झूंड में पाए जाते थे, अब इन स्थानों से भी गिद्ध विलुप्त हो गए है। उल्लेखनीय है कि प्रथम चरण की गणना में भी गिद्ध नहीं मिले थे और द्वितीय चरण की गणना में भी गिद्ध नहीं मिले। जिससे अब ऐसा लग रहा है कि गिद्ध जिले से विलुप्त हो चुके है।

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पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में गिद्धों की अहम भूमिका : पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में गिद्धों की अहम भूमिका रही है, लेकिन आज गिद्ध प्रजापति लगभग जिले से विलुप्त हो गई है। गणना के दौरान बैतूल जिले में एक भी गिद्ध पक्षी नहीं मिला है। गिद्ध पक्षी के नहीं मिलने से एक चिंता का कारण बन सकता है। गिद्ध पक्षी के विलुप्त होने का मुख्य कारण लगातार हो रहे अंधाधूंध रसायनों का प्रयोग व प्राकृतिक संसाधनों के दुरूपयोग को माना जा रहा है। गिद्ध पक्षी के विलुप्त हो जाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने लगा है। गिद्ध पक्षी मृत पशुओंं को खाकर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाते थे। आज से करीब 15 वर्ष से अधिक का समय हो गया, धीरे-धीरे गिद्ध कम होते जा रहे है। अब स्थिति यह आ गई है कि जिले से गिद्ध विलुप्त हो गए है। मृत जानवर मिलने पर गिद्ध झंूड में आते और मृत जानवर को खा लेते थे, जिससे दुर्गंध को रोकने में मदद करते थे। पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में गिद्धों की अहम भूमिका रही। जहां भी मृत मवेशी मिलता कुछ क्षणों में ही गिद्ध पहुंच जाते और मृत मवेशी को खा लेते थे।

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मवेशियों को लगने वाला टीका गिद्धों के लिए घातक : जानकारी के मुताबिक पशुओं को बुखार होने पर लगाए जाने वाला टीका डाईक्लोफिनैक सोडियम है, जिसका असर पशु के मरने के बाद भी रहता है। पशु चिकित्सक इस टीके को बुखार, सूजन और गर्दन की स्थिति में लगाते है। इस टीके का उपयोग कुछ वर्ष पहले बड़े पैमाने पर हो रहा था। इस टीके के कारण पशु तो ठीक हो जाते, लेकिन टीके लगने वाला पशु मृत होने के बाद गिद्ध के खाने पर इसका असर गिद्ध पक्षियों पर देखने को मिला। इस टीके बाद गिद्धों की संख्या धीरे-धीरे कम होना प्रारंभ हो गई। अब स्थिति यह है कि गिद्ध विलुप्त हो गए है। हालांकि सरकार ने मवेशियों को जो डाईक्लोफिनैक सोडियम का टीका लगाया जा रहा था इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। टीके पर प्रतिबंध तो लगा दिया, लेकिन गिद्धों की संख्या में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है, गिद्ध कम होते चले गए।

इनका कहना…
गिद्धों की गणना का दूसरा चरण भी पूरा हो गया है। बैतूल जिले के किसी भी वन मंडल क्षेत्र में गिद्ध पक्षी नहीं मिले है। पहले चरण की गणना में एक भी गिद्ध नहीं मिला था।

विजयानंतम टीआर,
 डीएफओ, दक्षिण वन मंडल, बैतूल

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